विष्णु नागर का व्यंग्यः मोदी जी को दुनिया का हर काम आता है, बस वही नहीं आता, जो आना चाहिए!

नई दिल्ली। पीएम मोदी को वह सब करना भी आता है, जिसका वे प्रधानमंत्री बनने से पहले विरोध किया करते थे। उन्हें अपने सारे विरोधियों को नाना प्रकार से ‘ठीक’ करना आता है। आंकड़ों और झूठ का घनघोर उत्पादन करने वाला उनके जैसा पराक्रमी तो देश के इतिहास में कभी हुआ ही नहीं। मोदीजी की सबसे बड़ी खूबी यह है कि उन्हें एक वही काम नहीं आता, जो उन्हें आना चाहिए, बाकी सारे काम आते हैं। मसलन वे प्रधानमंत्री हैं। उन्हें इसका भरपूर से भी भरपूर फायदा उठाना आता है, मगर इस नाते जो उन्हें आना चाहिए, वह नहीं आता! मसलन वे प्रधानमंत्री बने, तब इकोनॉमी ठीक-ठाक चल रही थी। उनके होते हुए भी यह इसी तरह चलती रहे, यह उन्हें बर्दाश्त नहीं हुआ! उन्हें इकानामी पर अपनी मोहर लगवानी थी। उन्होंने फटाफट नोटबंदी की और कहा कि देखो अभी इससे काला धन छूमंतर हुआ जाता है और साथ में आतंकवाद भी गायब हो जाएगा। कोई बात नहीं करोड़ों लोग हैरान-परेशान हुए, कुछ लाइन में लगे-लगे मर गए, तो क्या! मरना-जीना तो ऊपर वाले के हाथ में है- एक्ट ऑफ गाड है! चलो अब जीएसटी ले आते हैं! व्यापारियों की समस्या एक ही झटके मेंं खत्म। ये अलग बात है कि इससे व्यापारी ही खत्म हो जाने वाले थे। वह तो शुक्र है कि बालों-बाल बच गए। इतने से भी संतोष नहीं हुआ तो सारे देश में लॉकडाउन करवा दिया। कहा कि व्यापारी भाइयों, इस बार बर्बादी में तुम अकेले नहीं हो, फैक्ट्री-कारखानेदार, मजदूर, रेहड़ी वाले सभी शामिल हैं। तुम्हारे मन को इससे शांति मिलेगी कि बर्बादी संयुक्त है! जीएसटी की तरह इस बार तुम अकेले नहीं हो।और दिखाऊं काबिलियत, चलो इकोनॉमी को मैं शून्य से भी नीचे- 27 पर ले आता हूं। अब खुश! नहीं? चलो अभी भी वक्त है। मेरे कमाल देखते जाओ। अब क्या-क्या गिनाएं उनकी ऐसी महान ‘उपलब्धियां ‘! यह विषय इतना विस्तृत और गहन है कि इस पर ‘मोदी चरित मानस’ की रचना संभव है। इसके लिए आधुनिक तुलसीदास चाहिए और जहां तक दृष्टि जाती है, कोई दीखता नहीं। वैसे मोर और अन्य कविताएं लिखकर मोदीजी ने साबित कर दिया है कि अपने मानस के तुलसीदास वे स्वयं हो सकते हैं। यह काम वे लॉकडाउन में करें तो यह रचना अमरग्रंथों की श्रेणी में सम्मिलित हो जाएगी। इससे भक्तों के सामने संकट पैदा हो जाएगा कि वे रामचरित मानस पढ़ें या ‘मोदीचरित मानस’! तो खैर इस तरह वह देश की सारी समस्याएं ‘हल’ करते चले जा रहे हैं। रुके नहीं, थमे नहीं, पीछे मुड़कर नहीं देखा कभी। बेरोजगारी एक बड़ी भारी समस्या थी, चाय-पकोड़ा उद्योग का पुनरुत्थान करके उसे हल कर दिया! कोरोना को उन्होंने ताली-थाली बजवाकर छूमंतर करा दिया! और जो समस्याएं छूमंतर नहीं हो सकींं, उनके लिए जवाहरलाल नेहरू जिम्मेदार थे! फिर भी उन्होंने अपने ऊपर नेहरू जी के बनाए सरकारी उपक्रमों को बेचने की जिम्मेदार ली और बेशक उसे मन-प्राण से पूरा कर रहे हैं! और जहां वे कुछ नहीं कर पाए, वहां कम से कम नाम तो बदलवा ही दिए। रेसकोर्स रोड अब लोककल्याण मार्ग है। मुगलसराय स्टेशन अब दीनदयाल उपाध्याय स्टेशन है। योजना आयोग अब नीति आयोग है। सूरज का नाम सूरज और चांद का नाम चांद इसलिए है, क्योंंकि ये नाम न नेहरू जी ने दिए थे, न मुगलों ने! ऐसे सारे काम मोदीजी को खूब आते हैं। जंगल कटवा कर प्रकृति से प्रेम करना आता है। मोर पर कविता लिखना आता है। नगाड़ा बजाना आता है। योग करना और करवाना आता है। अंबानी के प्रोडक्ट का विज्ञापन करना और अडाणी के खिलाफ सारे केस पक्ष में निबटवाना आता है।डिजाइनर कपड़े पहनना आता है। गुफा में तपस्या करना आता है। ज्ञान बघारना तो उन्हें इतना आता है कि बड़े-बड़े विद्वान शर्म से चुल्लू भर पानी में डूबने की ट्रेनिंग ले रहे हैं! मन है नहीं मगर मन की बात करना आता है! कभी अपने को इस योजना, कभी उस कार्यक्रम के माध्यम से लांच और रिलांच और रि-रि-रि लांच करना आता है। ऊंची से ऊंची मूर्ति बनवाने में उनका सानी नहीं। बच्चों को परीक्षा पास करवाना और खुद फर्जी डिग्री लेना आता है!
(साभार:नवजीवन)