भारी पड़ सकती है अखबारों को लेकर सोशल मीडिया पर की जा रही ये ‘कारगुजारी’

तमाम अखबारों के प्रबंधन के लिए सोशल मीडिया पर इस तरह अखबारों के पीडीएफ का सर्कुलेशन कुछ और नहीं, बल्कि पायरेसी का एक रूप है। बताया जाता है कि जल्द ही सिर्फ सबस्क्राइब्ड मेंबर्स यानी जिन्होंने सबस्क्रिप्शन लिया है, वे ही ऑनलाइन न्यूजपेपर का उपयोग कर पाएंगे।
इस बारे में ‘इंडियन न्यूजपेपर सोसायटी’ (Indian Newspaper Society) सचिवालय की महासचिव मैरी पाल का कहना है, ‘हमारी जानकारी में आया है कि कुछ पब्लिशर्स को अखबारों के डिस्ट्रीब्यूशन में कुछ परेशानी आ रही है और पायरेसी के मामले, खासकर डिजिटल फॉर्मेट में ज्यादा बढ़ रहे हैं।’
दरअसल, आजकल तमाम अखबार ई-प्रारूप (epaper format) में उपलब्ध हैं, जिन्हें ऑनलाइन पढ़ा जा सकता है, जिनमें से कुछ तो बिल्कुल मुफ्त हैं। वैश्विक महामारी कोरोनावायरस (कोविड-19) के कारण अखबारों का सर्कुलेशन काफी प्रभावित हुआ है। खासकर, अप्रैल की शुरुआत में देश के कई स्थानों पर अखबारों का सर्कुलेशन बंद कर दिया गया था, तब से विभिन्न प्लेटफॉर्म्स पर ईपेपर्स की उपलबध्ता में काफी बढ़ोतरी हुई।
‘आईएनएस’ के अनुसार, तमाम यूजर्स अखबार के पेजों की पीडीएफ (PDF) बना रहे हैं और उसे वॉट्सऐप और टेलिग्राम ग्रुप्स पर पाठकों को भेज रहे हैं। इससे अखबारों और ई-पेपर्स को सबस्क्रिप्शन रेवेन्यू के रूप में काफी नुकसान हो रहा है। ‘आईएनएस’ ने भी सोशल मीडिया पर अखबारों के इस तरह सर्कुलेशन को गैरकानूनी करार देते हुए कहा कि तमाम पब्लिकेशंस अपने तरीके से इससे लड़ने का प्रयास कर रहे हैं। इस तरह की गतिविधियों को रोकने के लिए ‘आईएनएस’ ने कुछ सुझाव भी दिए हैं।
1: ऐप्स, वेबसाइट और अखबारों में स्पष्ट रूप से यह उल्लेख किया जाए कि इस तरह किसी भी अखबार अथवा उसके कुछ हिस्से को सर्कुलेट करना गैरकानूनी है और भारी जुर्माना लगाने के साथ ही कड़ी कानूनी कार्यवाही की जाएगी।
2: कानूनी कार्यवाही के बारे में कुछ खबरें प्रसारित करें, जिसमें भारी जुर्माने के साथ ही दोषियों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही के बारे में बताया जाए, ताकि अन्य लोगों को ऐसा करने से रोका जा सके।
3: इस तरह की गतिविधियों में लिप्त लोगों खासकर वॉट्सऐप और टेलिग्राम एडमिन के खिलाफ कानूनी कदम उठाएं और उन्हें कानूनी नोटिस भेजें। किसी भी वॉट्स ग्रुप में कुछ भी गैरकानूनी होता है, तो उसके लिए ग्रुप का एडमिन ही उत्तरदायी होता है।
4: कुछ ऐसे फीचर्स तैयार करें, जिससे पायरेसी को रोका अथवा कम किया जा सके। जैसे-पीडीएफ और इमेज डाउनलोड को सीमित कर दिया जाए। पेजों को कॉपी न किया जा सके, इसके लिए उसमें कुछ कोडिंग की जाए। इसमें यूजर आइडेंटिफायर कोड डाला जाए, जो दिखाई न दे। ताकि सोशल मीडिया पर पीडीएफ सर्कुलेट करने वालों की पहचान हो सके। प्रति सप्ताह एक निश्चित संख्या से अधिक पीडीएफ डाउनलोड करने वाले यूजर्स की सूची तैयार हो और उन्हें ब्लॉक किया जाए।
बताया जाता है कि कुख अखबारों ने इन सुझावों पर अमल करना भी शुरू कर दिया है। हिंदी अखबार ‘दैनिक भास्कर’ ने वॉट्सऐप और इंस्टाग्राम ग्रुप पर ऑनलाइन सर्कुलेशन के रूप में अखबारों की चोरी के बारे में एक खबर भी प्रकाशित की थी। इस खबर में कहा गया था कि वॉट्सऐप पर ई-पेपर के पीडीएफ शेयर करना गैरकानूनी है और इसका पालन न करने की स्थिति में ग्रुप एडमिन के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है। हालांकि, ‘फ्री प्रेस जर्नल’ (Free Press Journal) में छपी एक रिपोर्ट में कहा गया कि वॉटसऐप, टेलिग्राम या अन्य किसी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर फ्री प्रेस जर्नल के ई-पेपर के पीडीएफ को साझा करने पर कोई प्रतिबंध नहीं है। इन दोनों परस्पर विरोधी खबरों से लोगों में भ्रम पैदा हो गया कि वास्तव में ई-पेपर की पीडीएफ शेयर करना सही है या नहीं।
इसके बाद ‘इंडिया टुडे’ के एंटी फेक न्यूज वॉर रूम (AFWA) ने पाया कि अगर कोई अखबार ई-पेपर की पीडीएफ मुफ्त में उपलब्ध कराता है तो उसे प्रसारित करना गैरकानूनी नहीं है, लेकिन अगर कोई अखबार ई-पेपर के पैसे लेता है तो उसकी पीडीएफ बनाकर शेयर करना गैरकानूनी है। इसके अलावा, किसी भी ई-पेपर को डाउनलोड करके या कॉपी करके पीडीएफ बनाना और उसे टेलिग्राम और वॉट्सऐप आदि पर सर्कुलेट करना गैरकानूनी है।
इस बारे में उत्तर भारत के एक प्रमुख अखबार के मार्केटिंग हेड का कहना है, ‘अखबार उस समाचारपत्र मैनेजमेंट की प्रॉपर्टी है। इसे या तो खरीदकर अथवा ऑनलाइन सबस्क्राइब कर पढ़ा जा सकता है। इंडस्ट्री पहले ही मुश्किल दौर से गुजर रही है। हम नहीं चाहते कि पाठक प्रिंट मीडिया को छोड़ दें। सभी अखबार इस मामले में एक साथ हैं और इस स्थिति से निपटने के लिए जल्द ही एक प्लान लेकर आएंगे। हमें विश्वास है कि हमारे संरक्षक इसमें हमारे साथ खड़े होंगे।’