अंतरराष्ट्रीय तेल बाजार में भारी तबाही,शून्य डॉलर प्रति बैरल तक पहुंची कीमतें

स्पेशल रिपोर्ट-
कोरोना की वजह से लगभग दुनिया भर में जारी लॉकडाउन और तेल भंडार करने की क्षमता न होने के चलते तेल बाजार में तबाही आ गई है। इसके चलते तेल के दामों में करीब-करीब 100 फीसदी की गिरावट दर्ज हुई है और दाम करीब शून्य डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गए हैं। कोरोना के कारण विश्व अर्थव्यवस्था में कम से कम एक दशक की मांग को खत्म कर दिया है, लाखों लोगों की नौकरियां जाने का खतरा बढ़ गया है और बड़ी-बड़ी कंपनियों की अरबों डॉलर की वैल्यू खाक होती जा रही है। आर्थिक और औद्योगिक गतिविधियां ठप पड़ी हैं। इस सबका तेल की मांग पर बेहद भयावह असर पड़ा है। सोमवार को तेल की कीमतों ने उस वक्त सबसे बड़ा गोता खाया जब मई फ्यूचर के कांट्रेक्ट से ट्रेडर्स अलग हो गए। मई कांट्रेक्ट कल एक्सपायर होने वाला है। इस कारण तेल की कीमत में पहले करीब 80 फीसी की तेज गिरावट आई और यह अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई। तेल की यह कीमत उस स्तर से भी नीचे है जब 1983 में न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज ने फ्यूचर ट्रेडिंग शुरु की थी। सोमवार को तेल की कीमतों ने उस वक्त सबसे बड़ा गोता खाया जब मई फ्यूचर के कांट्रेक्ट से ट्रेडर्स अलग हो गए। मई कांट्रेक्ट कल एक्सपायर होने वाला है। इस कारण तेल की कीमत में पहले करीब 80 फीसी की तेज गिरावट आई और यह अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई। तेल की यह कीमत उस स्तर से भी नीचे है जब 1983 में न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज ने फ्यूचर ट्रेडिंग शुरु की थी। दरअसल पिछले दिनों तेल उत्पादन करने वाले देशों के संगठन ओपेक और इसके सहयोगियों ने तेल उत्पादनघटाने का ऐलान किया था, तब भी तेल के दामों में भारी गिरावट देखने को मिली है थी। लेकिन सोमवार की गिरावट ऐतिहासिक है।
भारत पर कितना होगा तेल कीमतों में गिरावट का असर?
भारत कच्चे तेल का बड़ा आयातक यानी इंपोर्टर है और जब भी कच्चा तेल सस्ता होता है भारत सरकार फायदे में रहती है। तेल की कीमतों में गिरावट होने से भारत अपने तेल आयात को कम नहीं करता है और साथ ही इससे व्यापार संतुलन भी बना रहता है। तेल के दाम गिरने से डॉलर के मुकाबले रुपए की कीमत में भी मजबूती आती है और महंगाई भी काबू में रहती है। तेल के दामों में गिरावट से एयरलाइंस, पेंट्स आदि बनाने वाली कंपनियों को फायदा होगा। विशेषज्ञों की मानें तो आने वाली 2-3 तिमाहियों में तेल के दामों में तेजी वापस आएगी, तब तक भारत की ऑयल मार्केटिंग कंपनियों इस कमजोरी का फायदा उठाएंगी।